एग्रीकल्चरल बैंक्स इन इंडिया
Author: वाचा, डी.ई.
Keywords: कृषि, भारत, किसान ऋण, सरकार, बैंक, डी.ई. वाचा
Publisher: [s.n.], [s.l.]
Description: यह संभवतः बीसवीं शताब्दी के आरंभ में, बंबई विधान परिषद के सदस्य, डी.ई वाचा द्वारा लिखित एक शोध पत्र है। लेखक का उद्देश्य भारत में किसानों की ऋणग्रस्तता की समस्या के संभावित समाधान पर चर्चा करना है, और वह शुरुआत में ही स्पष्ट कर देते हैं कि उनका इसके मूल का पता लगाने का कोई इरादा नहीं है। उन्होंने 1870 से 1900 के दशकों तक समस्या से निपटने के लिए ब्रिटिश सरकार के पिछले विभिन्न प्रयासों का उल्लेख किया है। समाधान के रूप में उनका सुझाव है कि, भारत में कृषि बैंकों की स्थापना, केवल खेतिहरों और किसानों के साथ लेनदेन करने के लिए की जाए।
Source: केंद्रीय सचिवालय ग्रंथागार
Type: दुर्लभ पुस्तक
Received From: केंद्रीय सचिवालय ग्रंथागार
| DC Field | Value |
| dc.contributor.author | वाचा, डी.ई. |
| dc.date.accessioned | 2017-05-11T05:48:43Z 2018-06-07T03:05:14Z |
| dc.date.available | 2017-05-11T05:48:43Z 2018-06-07T03:05:14Z |
| dc.description | यह संभवतः बीसवीं शताब्दी के आरंभ में, बंबई विधान परिषद के सदस्य, डी.ई वाचा द्वारा लिखित एक शोध पत्र है। लेखक का उद्देश्य भारत में किसानों की ऋणग्रस्तता की समस्या के संभावित समाधान पर चर्चा करना है, और वह शुरुआत में ही स्पष्ट कर देते हैं कि उनका इसके मूल का पता लगाने का कोई इरादा नहीं है। उन्होंने 1870 से 1900 के दशकों तक समस्या से निपटने के लिए ब्रिटिश सरकार के पिछले विभिन्न प्रयासों का उल्लेख किया है। समाधान के रूप में उनका सुझाव है कि, भारत में कृषि बैंकों की स्थापना, केवल खेतिहरों और किसानों के साथ लेनदेन करने के लिए की जाए। |
| dc.source | केंद्रीय सचिवालय ग्रंथागार |
| dc.format.extent | 33p. |
| dc.format.mimetype | application/pdf |
| dc.language.iso | अंग्रेज़ी |
| dc.publisher | [s.n.], [s.l.] |
| dc.subject | कृषि, भारत, किसान ऋण, सरकार, बैंक, डी.ई. वाचा |
| dc.type | दुर्लभ पुस्तक |
| dc.date.copyright | [n.d] |
| dc.identifier.accessionnumber | AS-000829 |
| dc.format.medium | text |
| DC Field | Value |
| dc.contributor.author | वाचा, डी.ई. |
| dc.date.accessioned | 2017-05-11T05:48:43Z 2018-06-07T03:05:14Z |
| dc.date.available | 2017-05-11T05:48:43Z 2018-06-07T03:05:14Z |
| dc.description | यह संभवतः बीसवीं शताब्दी के आरंभ में, बंबई विधान परिषद के सदस्य, डी.ई वाचा द्वारा लिखित एक शोध पत्र है। लेखक का उद्देश्य भारत में किसानों की ऋणग्रस्तता की समस्या के संभावित समाधान पर चर्चा करना है, और वह शुरुआत में ही स्पष्ट कर देते हैं कि उनका इसके मूल का पता लगाने का कोई इरादा नहीं है। उन्होंने 1870 से 1900 के दशकों तक समस्या से निपटने के लिए ब्रिटिश सरकार के पिछले विभिन्न प्रयासों का उल्लेख किया है। समाधान के रूप में उनका सुझाव है कि, भारत में कृषि बैंकों की स्थापना, केवल खेतिहरों और किसानों के साथ लेनदेन करने के लिए की जाए। |
| dc.source | केंद्रीय सचिवालय ग्रंथागार |
| dc.format.extent | 33p. |
| dc.format.mimetype | application/pdf |
| dc.language.iso | अंग्रेज़ी |
| dc.publisher | [s.n.], [s.l.] |
| dc.subject | कृषि, भारत, किसान ऋण, सरकार, बैंक, डी.ई. वाचा |
| dc.type | दुर्लभ पुस्तक |
| dc.date.copyright | [n.d] |
| dc.identifier.accessionnumber | AS-000829 |
| dc.format.medium | text |
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