कलेक्टेड वर्क्स ऑफ़ सर आर.जी. भंडारकर वॉल-4.
Author: नारायण बापूजी उत्गीकर द्वारा संपादित
Editor: edited by Narayan Bapuji Utgikar
Keywords: समाज सुधार, भारतीय विद्वान, आर.जी. भंडारकर, भंडारकर, वैष्णववाद, शैववाद, विल्सन भाषा विज्ञान व्याख्यान, भाषा विज्ञान, संस्कृत, संस्कृत भाषा
Publisher: भंडारकर ओरिएंटल रिसर्च इंस्टीट्यूट, पूना
Description: यह पुस्तक श्रृंखला का चौथा खंड है जो, भारतीय विद्वान और समाज सुधारक, सर आर.जी. भंडारकर के कार्यों को प्रस्तुत करती है। इस विशेष संकलन में वैष्णववाद, शैववाद और अन्य गौण धार्मिक प्रणालियों पर उनके कार्य शामिल हैं। इसमें 1877 में दिए गए "संस्कृत और उससे निकली प्राकृत भाषाएँ" शीर्षक पर उनके विल्सन भाषा विज्ञान संबंधी व्याख्यानों की विषय वस्तु भी शामिल है।
Source: केंद्रीय सचिवालय ग्रंथागार
Type: दुर्लभ पुस्तक
Received From: केंद्रीय सचिवालय ग्रंथागार
| DC Field | Value |
| dc.contributor.author | नारायण बापूजी उत्गीकर द्वारा संपादित |
| dc.contributor.editor | edited by Narayan Bapuji Utgikar |
| dc.date.accessioned | 2019-03-02T11:43:19Z |
| dc.date.available | 2019-03-02T11:43:19Z |
| dc.description | यह पुस्तक श्रृंखला का चौथा खंड है जो, भारतीय विद्वान और समाज सुधारक, सर आर.जी. भंडारकर के कार्यों को प्रस्तुत करती है। इस विशेष संकलन में वैष्णववाद, शैववाद और अन्य गौण धार्मिक प्रणालियों पर उनके कार्य शामिल हैं। इसमें 1877 में दिए गए "संस्कृत और उससे निकली प्राकृत भाषाएँ" शीर्षक पर उनके विल्सन भाषा विज्ञान संबंधी व्याख्यानों की विषय वस्तु भी शामिल है। |
| dc.source | केंद्रीय सचिवालय ग्रंथागार |
| dc.format.extent | xv, 640 p. |
| dc.format.mimetype | application/pdf |
| dc.language.iso | अंग्रेज़ी |
| dc.publisher | भंडारकर ओरिएंटल रिसर्च इंस्टीट्यूट, पूना |
| dc.subject | समाज सुधार, भारतीय विद्वान, आर.जी. भंडारकर, भंडारकर, वैष्णववाद, शैववाद, विल्सन भाषा विज्ञान व्याख्यान, भाषा विज्ञान, संस्कृत, संस्कृत भाषा |
| dc.type | दुर्लभ पुस्तक |
| dc.identifier.other | B Bha-C |
| dc.date.copyright | 1929 |
| dc.identifier.accessionnumber | AS003409 |
| dc.format.medium | text |
| DC Field | Value |
| dc.contributor.author | नारायण बापूजी उत्गीकर द्वारा संपादित |
| dc.contributor.editor | edited by Narayan Bapuji Utgikar |
| dc.date.accessioned | 2019-03-02T11:43:19Z |
| dc.date.available | 2019-03-02T11:43:19Z |
| dc.description | यह पुस्तक श्रृंखला का चौथा खंड है जो, भारतीय विद्वान और समाज सुधारक, सर आर.जी. भंडारकर के कार्यों को प्रस्तुत करती है। इस विशेष संकलन में वैष्णववाद, शैववाद और अन्य गौण धार्मिक प्रणालियों पर उनके कार्य शामिल हैं। इसमें 1877 में दिए गए "संस्कृत और उससे निकली प्राकृत भाषाएँ" शीर्षक पर उनके विल्सन भाषा विज्ञान संबंधी व्याख्यानों की विषय वस्तु भी शामिल है। |
| dc.source | केंद्रीय सचिवालय ग्रंथागार |
| dc.format.extent | xv, 640 p. |
| dc.format.mimetype | application/pdf |
| dc.language.iso | अंग्रेज़ी |
| dc.publisher | भंडारकर ओरिएंटल रिसर्च इंस्टीट्यूट, पूना |
| dc.subject | समाज सुधार, भारतीय विद्वान, आर.जी. भंडारकर, भंडारकर, वैष्णववाद, शैववाद, विल्सन भाषा विज्ञान व्याख्यान, भाषा विज्ञान, संस्कृत, संस्कृत भाषा |
| dc.type | दुर्लभ पुस्तक |
| dc.date.copyright | 1929 |
| dc.identifier.accessionnumber | AS003409 |
| dc.identifier.other | B Bha-C |
| dc.format.medium | text |
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