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लद्दाखी भोजन: कुटुंब और मन के लिए उत्तम आहार

केंद्र शासित प्रदेश लद्दाख भारतीय पारहिमालय (ट्रांस-हिमालयी) क्षेत्र में स्थित है। यह एक उच्च ठंडा रेगिस्तानी क्षेत्र है और भारत का सबसे ऊँचा पठार है जिसकी ऊँचाई 3000 मीटर से अधिक है। यह उत्तर में भव्य काराकोरम शृंखला, दक्षिण और पश्चिम में हिमालय शृंखला, पूर्व में तिब्बती पठार, पश्चिम में पाकिस्तान, उत्तरी और पूर्वी भाग में चीन और दक्षिण-पूर्व में हिमाचल प्रदेश के लाहौल और स्पीति के बीच स्थित है। इसमें कोई आश्चर्य की बात नहीं है कि यह प्राचीन भूमि पिंड अतीत में महत्वपूर्ण व्यापार मार्गों के लिए एक सामरिक मार्ग के रूप में प्रयोग किया जाता था। लद्दाख के इस दिलचस्प इतिहास ने भोजन सहित इसके कई सांस्कृतिक पहलुओं पर एक अमिट छाप छोड़ी है। तिब्बत और कश्मीर जैसे पड़ोसी क्षेत्रों के पाकशाला संबंधी प्रभाव को सूखे मेवों और सुगंधित मसालों के प्रयोग से व्यंजनों को तैयार करने के तरीके में देखा जा सकता है। इस क्षेत्र की प्रमुख बस्तियाँ आमतौर पर नदियों और धाराओं के किनारों या वेदिकाओं पर स्थित हैं, जबकि खानाबदोश समुदाय समुद्र तल से 4500 मीटर की ऊँचाई पर पठार पर रहते हैं।

The picturesque terrain of Ladakh. Image source: Wikimedia Commons

The picturesque terrain of Ladakh. Image source: Wikimedia Commons

एक उद्विकासी पाक शैली : परिवर्तन और निरंतरता के मूलतत्व

कई शताब्दियों तक लद्दाख की जनसंख्या, जीविका कृषि पर निर्भर थी और खाद्यान्न उत्पादन के मामले में आत्मनिर्भर थी। कठोर जलवायु परिस्थितियों के बावजूद लद्दाखियों ने एक उत्कृष्ट कृषि प्रणाली तैयार करने में कामयाबी हासिल की है। पारंपरिक लद्दाखी आहार जौ और गेहूँ से बना होता है और इन अनाजों ने उनकी पोषणज प्रणाली के आधार के रूप में काम किया है। अन्य मुख्य फसलें हैं- दालें, खुबानी और आलू । मसाले, चावल और चाय जैसी अन्य वस्तुओं के लिए उन्हें आयात पर निर्भर रहना पड़ता है। हालाँकि, 1962 में श्रीनगर-लेह सड़क मार्ग, जो पहले से एकांत क्षेत्रों को मुख्य भूमि से जोड़ता है, के खुलने से सामाजिक-आर्थिक परिस्थितियों में बदलाव के साथ-साथ खान-पान की आदतों के मामले में भी बड़े बदलाव देखे गए। चावल, जो लद्दाखियों के लिए एक भोग विलास हुआ करता था, अब एक वहन करने योग्य बुनियादी भोज्य पदार्थ के रूप में उनके आहार का मुख्य हिस्सा है। दे सी या चावल का हलवा, जिसमें चावल को मक्खन के साथ पकाया जाता है और फिर उसमें चीनी मिलाई जाती है, एक लोकप्रिय व्यंजन है। बेहतर परिवहन मार्गों और संपर्क स्थापन के कारण गैर-स्थानीय खाद्य पदार्थों की निरंतर उपलब्धता का मतलब है कि इससे नई खान-पान की आदतें विकसित हुई हैं। इसके साथ ही ये आदतें विशिष्ट रूप से मौसम के साथ भी बदलती नज़र आती हैं। लद्दाखियों को सर्दियों के महीनों में जौं और गेहूँ जैसे स्थानीय रूप से उत्पादित अनाजों का उपभोग करते हुए देखा जा सकता है, जबकि गर्मियों के दौरान चावल का सेवन किया जाता है।

Women grinding spices (which will be dried and stored in preparation for the long winter), Tso Moriri, Ladakh. Image source: Flickr

Women grinding spices (which will be dried and stored in preparation for the long winter), Tso Moriri, Ladakh. Image source: Flickr

पाक शैली को रूप देने वाले बुनियादी भोज्य पदार्थ और विशेषताएँ

यह चारों तरफ से भूमि से घिरा ठंडा रेगिस्तान न केवल अत्यधिक ऊँचाई पर स्थित है, बल्कि यह लंबे समय तक कड़ाके की सर्दियाँ भी अनुभव करता है। लेह के इस भीषण ठंड वाले क्षेत्र में मात्र मई से अगस्त तक की छोटी सी अवधि में ही खेती करना संभव है। इस छोटे से कृषि काल के दौरान, इस कठोर इलाके में पालक, मूली, चुकंदर, मटर और चीनी गोभी या नापा गोभी जैसी ताज़ी हरी सब्ज़ियों को बहुमूल्य माना जाता है। हरी सब्ज़ियों को या तो ताज़ा पकाया जाता है या फिर बाद में लंबे सर्दियों के महीनों में उपयोग के लिए सुखाया जाता है। तंग्तुर बनाने के लिए इन सब्ज़ियों को अक्सर झो (दही) या तारा (छाछ) के साथ मिलाया जाता है या इन्हें सीधे थुकपा में डाल दिया जाता है। खुबानी लद्दाख में प्रचुरता से उगती है और इन फलों को चाशनी में डालकर फेटिंग बनाया जाता है और नाश्ते के लिए या मिठाई के रूप में झो के साथ परोसा जाता है। सी बकथॉर्न झाड़ यहाँ बहुतायत में उगता है और इसके छोटे नारंगी बेरी, जिन्हें स्थानीय रूप से चस्तु रुरु कहा जाता है, विटामिन सी और संतृप्त और बहुअसंतृप्त वसा के प्रचुर भंडार होते हैं। लद्दाख में सी बकथॉर्न एक महत्वपूर्ण नकदी फसल है और लद्दाखी लोग चस्तु रुरु को मुरब्बे और शरबत में बदल कर उनका सेवन करते हैं।

लद्दाखी लोग परंपरागत रूप से भेड़, गाय, बकरी और याक जैसे जानवरों के आसानी से उपलब्ध माँस का सेवन करते हैं, जिन्हें वे पालते हैं। वे इन जानवरों के दूध से मक्खन, झो, लाबो (नरम पनीर) और छुरफे (सूखा पनीर) जैसे उत्पाद बनाने के लिए संसाधित करते हैं। मक्खन निकालने के बाद बचे हुए मट्ठे को छुरखू कहा जाता है और इसका उपयोग खाना पकाने के दौरान किया जाता है। अतीत में, पूर्वी लद्दाख के दूध से बने उत्पादों को बहुत महत्व दिया जाता था और उन्हें तिब्बत और ज़ंस्कार में नमक के बदले दे दिया जाता था। वे अपने व्यंजनों में स्वाद और ज़ायका जोड़ने के लिए सुगंधित मसालों के साथ कई सूखे मेवों का भी उपयोग करते हैं। लद्दाखी खाना पकाने में उपयोग किए जाने वाले सबसे आम मसालों में से एक है मिर्च, जो शरीर में गर्मी पैदा करने की अपनी प्रवृत्ति के कारण पसंद की जाती है। कठोर जलवायु परिस्थितियों के कारण यहाँ का भोजन मुख्य रूप से गर्म शोरबा, सूप, और मदिरा पर आधारित व्यंजनों से भरपूर होता है जो शरीर को गर्म रखते हैं।

लद्दाखी भोजन के विशिष्ट व्यंजन

साम्पा-

साम्पा या नम्फे लद्दाख का मुख्य भोज्य पदार्थ है और यह सदियों से यहाँ की रसोई का हिस्सा है। साम्पा भुने जौ का आटा होता है और इसे आमतौर पर चाय, सूप और डम्पलिंग की बाहरी परत के आटे के मिश्रण में मिलाया जाता है। यह पौष्टिक पाउडर आमतौर पर युवाओं और बुजुर्गों को दिया जाता है और आमतौर पर नाश्ते में खाया जाता है। साम्पा के लिए जौ का आटा रंतक अर्थात लद्दाख की पारंपरिक पनचक्की का उपयोग करके पीसा जाता है।

पबा-

पबा एक सूखी रोटी होती है जिसे साम्पा और मटर के आटे को उबलते पानी में मिलाकर बनाया जाता है। इस रोटी पर अच्छे से घी लगाकर दाल और पकी हुई सब्ज़ियों के साथ परोसा जाता है।

Tingmo. Image source: Flickr

Tingmo. Image source: Flickr

टिंगमो-

टिंगमो एक तिब्बती खमीरयुक्त भाप में पके हुए बन होते हैं जिन्हें अक्सर सब्ज़ी या मीट की खिचड़ी (स्ट्यू) के साथ परोसा जाता है। लद्दाख की सड़कों पर, इसे आमतौर पर चटपटा बनाया जाता है जिसमें हल्की सी मिठास होती है। टिंगमो को अक्सर नाश्ते या चाय के साथ अल्पाहार के रूप में खाया जाता है।

छुतागी-

इस व्यंजन का शाब्दिक अर्थ है "पानी की रोटी"। यह पोषण से भरा एक विशिष्ट लद्दाखी व्यंजन है। रोटी के आटे को पहले चपटा किया जाता है और फिर एक बो-टाई का आकार देने से पहले गोलाकार आकार में काट लिया जाता है। इसके बाद इस आटे को माँस या सब्ज़ी के गाढ़े सूप में पकाया जाता है। छुतागी एक भारी, पौष्टिक भोजन है और आमतौर पर फसल की कटाई के मौसम के दौरान परोसा जाता है।

तागी खंबीर-

यह पारंपरिक लद्दाखी रोटी अपने पान के आकार से आसानी से पहचानी जा सकती है। यह गेहूँ के आटे को सेंक कर बनाई जाती है और यह काफ़ी मोटी, चबने वाली और करारी होती है जो इसे बहुत संतुष्टि प्रदान करने वाला पकवान बनाता है। लद्दाखी लोग अपने दिन की शुरुआत इन ताज़ी पकी हुई रोटियों के साथ करते हैं, जिन्हें एक स्थानीय खमीर से बनाया जाता है जिसे पुल कहते हैं। लेकिन इसमें खमीर उठाने के लिए बेकिंग पाउडर का उपयोग भी किया जाता है। तागी खंबीर आग पर पत्थरों के सहारे टिके लोहे या पत्थर के तवे पर या लद्दाखी तंदूर में सेकी जाती है, जिसे थुप कहा जाता है। थुप को लकड़ी या गोबर के ईंधन से जलाया जाता है। परोसने से पहले रोटी को अंगारों पर रखा जाता है। तागी के कई प्रकार होते हैं जैसे तागी थलखुरुक और तागी मेर-खौर । तागी थलखुरुक को आग की राख में सेका जाता है जबकि तागी मेर-खौर को मक्खन और अंडे की सफ़ेदी वाले आटे से बनाया जाता है। आम तौर पर तागी मेर-खौर को खुबानी के मुरब्बे के साथ खाया जाता है।

A list of traditional foods of Ladakh and their descriptions on a panel at the Hall of Fame Museum at Leh. Image Source: Wikimedia Commons

A list of traditional foods of Ladakh and their descriptions on a panel at the Hall of Fame Museum at Leh. Image Source: Wikimedia Commons

लद्दाखी पुलाव-

लद्दाखी पुलाव की उत्पत्ति यारकंदी पिलाउ से हुई है और यह लद्दाखी भोजन में जोड़ा गया एक अहम् आहार है। यह स्वादिष्ट व्यंजन चावल, सुगंधित मसालों और भेड़ के माँस से बने रसे (मटन स्टॉक) से बनाया जाता है। चावल को मसालों के ज़ायके और सुगंध तथा भेड़ के माँस से बने रस में भीगने के लिए छोड़ दिया जाता है। इसे अच्छा स्वाद देने के लिए भुनी प्याज़, गाजर और मेवा आदि की सजावट के साथ परोसा जाता है।

स्क्यू-

पौष्टिक सूप स्क्यू एक पारंपरिक व्यंजन है जिसे गेहूँ और जड़ वाली सब्ज़ियों से बनाया जाता है। गेहूँ के नरम आटे के कान के आकार के नूडल (सेवइयों) को एक बार में खाने लायक टुकड़ों में बनाया जाता है और गाजर और शलजम के साथ पकाया जाता है। यह मुख्य व्यंजन माँस और सब्ज़ियों के साथ परोसा जाता है।

थुकपा-

यह लोकप्रिय तिब्बती नूडल-सूप भी लद्दाखियों का पसंदीदा खाना है। थुकपा पारंपरिक रूप से जौ या गेहूँ के नूडल या नम्फे (भुना हुआ जौ का आटा; साम्पा) के नूडल, और सब्ज़ियों या माँस को पतले सूप में मिलाकर बनाया जाता है। यह लद्दाखी घरों में दोपहर या रात के खाने में खाया जाता है। मौसम और उपलब्धता यह निर्धारित करती है कि थुकपा बनाने में कौनसी सामग्री प्रयुक्त होगी। थुकपा के लिए नूडल को हाथ से दबाकर आकार दिया जाता है जैसा कि अक्सर ग्लूटेन मुक्त जौ के आटे के मामले में होता है जिसे आसानी से नूडल में रोल करना मुश्किल होता है। महिलाएँ अक्सर अपने घरों में गर्म चूल्हे के आसपास बैठकर नूडल के आटे को छोटे कान या कप के आकार के टुकड़ें बनाती हैं। थुकपा को छुरफे की सजावट के साथ परोसा जाता है।

A bowl of egg thukpa. Image source: Wikimedia Commons

A bowl of egg thukpa. Image source: Wikimedia Commons

Hot mokmok (momo) in Ladakh. Image source: Wikimedia Commons

Hot mokmok (momo) in Ladakh. Image source: Wikimedia Commons

मोकमोक-

लद्दाख में सर्वोत्कृष्ट पहाड़ी भोजन, मोकमोक या मोमो एक लोकप्रिय पाक विकल्प है। यह उबला हुआ डम्पलिंग, मटन कैसे मीट या सब्ज़ियों के साथ बनाया जा सकता है। मोमोज़ को माँस की हड्डियों से बने पतले सूप की कटोरी में या लाल मिर्च की चटनी के साथ परोसा जाता है।

पोपोट -

यह अनाज का सूप कारगिल क्षेत्र का एक पारंपरिक व्यंजन है और आमतौर पर मौसमी ममानी भोजन महोत्सव में दिखाया जाता है। इस महोत्सव के दौरान स्थानीय लोग अपने घरों पर विशेष व्यंजन तैयार करते हैं और लद्दाखी कैलेंडर के दूसरे महीने के अंतिम गुरुवार या शुक्रवार की सुबह महोत्सव स्थल पर इकट्ठा होते हैं। पोपोट भीगे हुए गेहूँ और मटर से बना होता है जिसे बाद में बकरी या भेड़ के सिर या पैर के साथ पकाया जाता है।

गुड़गुड़ चा-

यह नमकीन मक्खन युक्त चाय एक बारहमासी पसंदीदा लद्दाखी पेय है। इसे दूध की चाय में नमक और मक्खन मिलाकर तैयार किया जाता है। लद्दाखियों द्वारा इस चाय का उत्साह से सेवन किया जाता है क्योंकि यह पेय प्रकृति के तत्वों के खिलाफ़ शरीर को आवश्यक रोधन प्रदान करता है। "गुड़गुड़" नाम उस लंबी टोंटी में उत्पन्न ध्वनि से आता है जिसमें चाय, गर्म पानी, नमक और मक्खन को मथा जाता है। मथी हुई चाय को फिर एक मिट्टी की केतली में डाल दिया जाता है जिसे गर्म रखने के लिए एक मटके के अंदर रखा जाता है। लद्दाखी लोग पूरे दिन छोटे प्यालों में गुड़गुड़ चा का आनंद उठाते हैं ।

छंग-

छंग, एक हल्का मादक पेय है, जिसे स्थानीय रूप से किण्वित जौ से बनाया जाता है। यह अधिकांश लद्दाखी उत्सवों का एक अनिवार्य हिस्सा है। अतीत में जब चाय एक विलासिता थी और जौ प्रचुर मात्रा में उपलब्ध था, लद्दाखी लोग गुड़गुड़ चा के बजाय दिन में हर समय छंग पीया करते थे। यह प्रथा अभी भी लद्दाख के कुछ हिस्सों में प्रचलित है। छंग लद्दाखियों के लिए एक रसमीय पेय भी है जिसे त्योहारों और विशेष अवसरों के दौरान परोसा जाता है। जब शादी का प्रस्ताव किया जाता है तो लड़की के परिवार को छंग परोसा जाता है और छंग की स्वीकृति को शादी की स्वीकृति के रूप में माना जाता है।

लद्दाखी भोजन में ऐसे व्यंजन हैं जो उस स्थान की जलवायु से उत्पन्न परिस्थितियों के पूरक होते हैं। इनमें सब्ज़ियों और माँस का उचित संतुलन होता है जो अतिस्वादिष्ट और अत्यधिक पौष्टिक होते हैं। ये व्यंजन आम तौर पर ताज़ी खरीदी गई सामग्री से बनाए जाते हैं और स्वाद के लिए नमक, प्याज़, लहसुन तथा मिर्च के समुचित प्रयोग पर आधारित होते हैं। इस प्रकार का भोजन लद्दाखियों के अत्यधिक ऊँचाई वाले जीवन को प्रतिबिंबित करता है, जो अपने खाद्य पदार्थों में इतनी जीवंतता और प्रेम लाने में कामयाब रहे हैं। यह जूले यानी लद्दाखी अभिवादन के उत्साह और लोकाचार का एक सच्चा प्रतीक है।