अ कंपैरेटिव ग्रामर ऑफ़ द मॉडर्न आर्यन लैंगवेज ऑफ़ इंडिया: टु विट. हिंदी, पंजाबी, सिंधी, गुजराती, मराठी, ओड़िया एंड बंगाली, वॉल. II
Author: बीम्स, जॉन
Keywords: व्याकरण, इंडो-आर्यन भाषाएँ, भाषा, हिंदी, पंजाबी, सिंधी, गुजराती, मराठी, उड़िया, बंगाली, भाषाशास्त्र, भाषा-विज्ञान
Publisher: ट्रबनर, लंदन
Description: यह पुस्तक मुख्यतः हिंदी, पंजाबी, सिंधी, गुजराती, मराठी, उड़िया और बंगाली जैसी इंडो-आर्यन भाषाओं के तुलनात्मक व्याकरण का दूसरा खंड है। यह पुस्तक बंगाल सिविल सेवा के सदस्य और रॉयल एशियाटिक बंगाल के सदस्य जॉन बीम्स के द्वारा लिखी गई है। इस पुस्तक को लिखने में लेखक की मंशा उक्त भाषाओं की सबसे प्रमुख विशेषताओं को प्रस्तुत करना है जो उन्होंने अपने आसपास सुनी और उन्हें लगा कि इसे अंग्रेज़ों द्वारा समझने की आवश्यकता है। इसमें इन भाषाओं के संज्ञा और सर्वनाम शामिल हैं, जिन्हें मूल शब्द, लिंग, प्रत्यावर्तन और सर्वनामों के बारे में विस्तार से जानकारी देने वाले भागों में विभाजित किया गया है।
Source: केंद्रीय सचिवालय ग्रंथागार
Type: दुर्लभ पुस्तक
Received From: केंद्रीय सचिवालय ग्रंथागार
DC Field | Value |
dc.contributor.author | बीम्स, जॉन |
dc.date.accessioned | 2018-07-30T11:46:13Z |
dc.date.available | 2018-07-30T11:46:13Z |
dc.description | यह पुस्तक मुख्यतः हिंदी, पंजाबी, सिंधी, गुजराती, मराठी, उड़िया और बंगाली जैसी इंडो-आर्यन भाषाओं के तुलनात्मक व्याकरण का दूसरा खंड है। यह पुस्तक बंगाल सिविल सेवा के सदस्य और रॉयल एशियाटिक बंगाल के सदस्य जॉन बीम्स के द्वारा लिखी गई है। इस पुस्तक को लिखने में लेखक की मंशा उक्त भाषाओं की सबसे प्रमुख विशेषताओं को प्रस्तुत करना है जो उन्होंने अपने आसपास सुनी और उन्हें लगा कि इसे अंग्रेज़ों द्वारा समझने की आवश्यकता है। इसमें इन भाषाओं के संज्ञा और सर्वनाम शामिल हैं, जिन्हें मूल शब्द, लिंग, प्रत्यावर्तन और सर्वनामों के बारे में विस्तार से जानकारी देने वाले भागों में विभाजित किया गया है। |
dc.source | केंद्रीय सचिवालय ग्रंथागार |
dc.format.extent | 2v. |
dc.format.mimetype | application/pdf |
dc.language.iso | अंग्रेज़ी |
dc.publisher | ट्रबनर, लंदन |
dc.subject | व्याकरण, इंडो-आर्यन भाषाएँ, भाषा, हिंदी, पंजाबी, सिंधी, गुजराती, मराठी, उड़िया, बंगाली, भाषाशास्त्र, भाषा-विज्ञान |
dc.type | दुर्लभ पुस्तक |
dc.date.copyright | 1875 |
dc.identifier.accessionnumber | AS-001607 |
dc.format.medium | text |
DC Field | Value |
dc.contributor.author | बीम्स, जॉन |
dc.date.accessioned | 2018-07-30T11:46:13Z |
dc.date.available | 2018-07-30T11:46:13Z |
dc.description | यह पुस्तक मुख्यतः हिंदी, पंजाबी, सिंधी, गुजराती, मराठी, उड़िया और बंगाली जैसी इंडो-आर्यन भाषाओं के तुलनात्मक व्याकरण का दूसरा खंड है। यह पुस्तक बंगाल सिविल सेवा के सदस्य और रॉयल एशियाटिक बंगाल के सदस्य जॉन बीम्स के द्वारा लिखी गई है। इस पुस्तक को लिखने में लेखक की मंशा उक्त भाषाओं की सबसे प्रमुख विशेषताओं को प्रस्तुत करना है जो उन्होंने अपने आसपास सुनी और उन्हें लगा कि इसे अंग्रेज़ों द्वारा समझने की आवश्यकता है। इसमें इन भाषाओं के संज्ञा और सर्वनाम शामिल हैं, जिन्हें मूल शब्द, लिंग, प्रत्यावर्तन और सर्वनामों के बारे में विस्तार से जानकारी देने वाले भागों में विभाजित किया गया है। |
dc.source | केंद्रीय सचिवालय ग्रंथागार |
dc.format.extent | 2v. |
dc.format.mimetype | application/pdf |
dc.language.iso | अंग्रेज़ी |
dc.publisher | ट्रबनर, लंदन |
dc.subject | व्याकरण, इंडो-आर्यन भाषाएँ, भाषा, हिंदी, पंजाबी, सिंधी, गुजराती, मराठी, उड़िया, बंगाली, भाषाशास्त्र, भाषा-विज्ञान |
dc.type | दुर्लभ पुस्तक |
dc.date.copyright | 1875 |
dc.identifier.accessionnumber | AS-001607 |
dc.format.medium | text |