भद्रा किला : गुजरात की विरासत का प्रवेश द्वार
भद्रा किला गुजरात के अहमदाबाद शहर में स्थित है। यह अहमदाबाद शहर के किलेबंद हिस्से का एक प्रमुख ऐतिहासिक स्मारक है। पहले इसे अरक किला कहा जाता था। साबरमती नदी के तट पर स्थित इस प्रसिद्ध किले में गुजरात सल्तनत के शासक, सुल्तान अहमद शाह प्रथम के शासनकाल में एक शाही दरबार लगा करता था। इस किले के परिसर में शहर का सबसे पहला और शानदार विद्युतीय यंत्र, भद्रा किला घंटाघर, मौजूद है। भद्रा किला अहमदाबाद की एक शानदार इमारत है, जो इस शहर के इतिहास और भव्यता का प्रतीक है।
भद्रा किला। छवि सौजन्य : विकिमीडिया कॉमन्स
इतिहास
भद्रा किला और अहमदाबाद शहर कई महत्त्वपूर्ण ऐतिहासिक घटनाओं के साक्षी, और राजनीतिक सत्ता और अधिकार के ऐतिहासिक प्रतीक रहे हैं। इस शहर का इतिहास 8वीं शताब्दी से आरंभ होता है, जब अहमदाबाद के आसपास का क्षेत्र आशावल कहलाता था और भील जनजाति के लोग यहाँ निवास करते थे। 11वीं शताब्दी में, सोलंकी राजा, करणदेव प्रथम ने आशावल के भील राजा को परास्त करके साबरमती नदी के तट पर कर्णावती शहर बसाया। सोलंकियों का शासनकाल 13वीं शताब्दी तक चला, जिसके बाद गुजरात के शासन की बागडोर ढोलका के वाघेला राजवंश के पास चली गई। 14वीं शताब्दी में, गुजरात दिल्ली सल्तनत के अधीन हुआ। दिल्ली सल्तनत के लिए गुजरात के सूबेदार के रूप में कार्यरत, ज़फ़र खान मुज़फ़्फ़र ने 1407 में अपनी स्वतंत्रता घोषित की और पाटन में गुजरात सल्तनत की स्थापना की। ज़फ़र खान के पोते, अहमद शाह प्रथम ने 1411 में आशावल के पास अहमदाबाद शहर की स्थापना की और इसे गुजरात सल्तनत की राजधानी बना दी। इसी वर्ष, उन्होंने भद्रा किले का भी निर्माण किया। ऐसा माना जाता है कि किले के परिसर के भीतर जो भद्र काली का मंदिर है, उसी पर इस किले का नाम पड़ा है। लेकिन किले के पास एक पट्टिका है जो किले के नाम की उत्पत्ति के विषय में एक अलग कहानी बयान करती है। इस पट्टिका के अनुसार, अन्हिलवाड़ा-पाटन में भद्रा नाम का एक प्राचीन राजपुत नगरकोट है, जिसके नाम पर इस किले का नाम पड़ा।
यह किला साबरमती नदी के निकट और एक ऐसे व्यापार मार्ग पर रणनीतिक रूप से स्थित था जो खंभात, सूरत, और भरूच जैसे बंदरगाहों से होकर गुज़रता था, जिसके कारण इसमें कई शासकों की दिलचस्पी रही। 16वीं शताब्दी के मध्य में मुगलों ने इस क्षेत्र को अपने अधिकार में ले लिया। मुगल शासनकाल में गुजरात पर लगभग 60 सूबेदारों ने शासन किया। इस दौरान, अहमदाबाद ने राजधानी के रूप में अपना महत्त्व खो दिया, लेकिन व्यापार और वाणिज्य के केंद्र के रूप में इसका स्थान कायम रहा।
1753 में, इस शहर पर मुगलों का शासन समाप्त हुआ, जब पेशवाओं और गायकवाडों ने साथ मिलकर यहाँ मराठा साम्राज्य की स्थापना की। पहले आंग्ल-मराठा युद्ध के दौरान अंग्रेज़ी सेना ने जनरल थॉमस विंडहम गोडार्ड के आदेश पर इस किले पर आक्रमण किया और 15 फ़रवरी, 1779, को अहमदाबाद शहर को अपने कब्ज़े में ले लिया। उसके बाद सालबाई संधि के तहत, इस किले को दोबारा मराठों को सौंप दिया गया। 1817 में, अंग्रेज़ों ने किले पर कब्ज़ा कर लिया और 1947 में, भारत के स्वतंत्र होने तक यह किला उन्हीं के अधिकार में रहा। इस दौरान, राजनीतिक कैदियों और क्रांतिकारियों को बंदी बनाए रखने के लिए इस किले का उपयोग किया गया। वर्तमान में, इस किले परिसर में भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण, डाक घर, और शहर की सिविल अदालत जैसे कुछ सरकारी कार्यालय स्थित हैं।
वास्तुकला
भद्रा किला लगभग 43 एकड़ के भू-भाग में फैला है। यह चारों ओर से लाल बलुआ पत्थर की दीवारों से घिरा है। यह ऐतिहासिक किला भारतीय-अरबी (इंडो-सारसेनिक) वास्तुकला का एक असाधारण उदाहरण है। महीन नक्काशियाँ, सुगढ़ मेहराबें, और छज्जे, इसकी कुछ विशेषताएँ हैं। खिड़कियों और भित्ति-चित्रों को भव्य और उत्कृष्ट जाली के काम से सजाया गया है। किले की कुछ अलंकृत मेहराबों पर इस्लामी अभिलेख प्रदर्शित हैं। इस किले में आठ मेहराबदार प्रवेश द्वार थे। भद्रा द्वार, जिसे पहले पीरन पीर का दरवाज़ा कहते थे, यहाँ का मुख्य प्रवेश द्वार था। किले परिसर के भीतर अनेक प्रसिद्ध संरचनाएँ हैं।
इस भव्य किले के पूर्व में तीन दरवाज़ा नामक एक ऐतिहासिक प्रवेश द्वार स्थित है। तीन दरवाज़ा शहर का सबसे पुराना और सबसे लंबा प्रवेश द्वार है। इसे सुल्तान अहमद शाह प्रथम ने बनवाया था। इस आकर्षक प्रवेश द्वार में तीन मेहराबें हैं, जिनमें से मध्यवर्ती मेहराब अन्य दो मेहराबों से अधिक चौड़ी है। यह संरचना महीन नक्काशियों से अलंकृत है। इस संरचना के ऊपर एक अटारी है, जिसका ऊपरी भाग सुसज्जित है। यह प्रवेश द्वार अहमदाबाद नगर निगम के प्रतीक-चिह्न (लोगो) में प्रदर्शित है।
तीन दरवाज़ा। छवि सौजन्य : विकिमीडिया कॉमन्स
तीन दरवाज़ा भद्रा किले के शाही चौक का प्रवेश द्वार है। मैदान-शाह के नाम से जाना जाने वाला यह शाही चौक एक खुला स्थान है जहाँ कई ताड़ के पेड़ खड़े हैं। इस स्थान का उपयोग शाही जुलूसों और खेलों के लिए किया जाता था। इस किले के पश्चिम में नगीना बाग नामक एक शाही उद्यान स्थित है, जो इस किले का एक प्रमुख आकर्षण है।
किले परिसर के भीतर बनी अहमद शाह की मस्जिद यहाँ की एक अन्य प्रसिद्ध संरचना है। इस मस्जिद को शाही जाम-ए-मस्जिद भी कहते हैं। इस मस्जिद का निर्माण 1414 में किया गया था। इसे अहमदाबाद की सबसे पुरानी मस्जिदों में से एक माना जाता है। ऐसा कहा जाता है कि यह मस्जिद शाही परिवार की निजी मस्जिद थी। इस मस्जिद में चार मेहराबदार प्रवेश द्वार हैं और इसे 152 खंभों का सहारा देते हुए बनाया गया है। खिड़कियों को छेद वाले पत्थरों की जाली की कारीगरी से अलंकृत किया गया है। आँगन में गंज शहीद या हुतात्माओं का टीला नामक एक ऊँचा स्थल है। इसमें उन योद्धाओं की कब्रें हैं, जिन्होंने सुल्तान अहमद के शुरुआती युद्धों में अपनी जानें गँवाईं थीं।
अहमद शाह की मस्जिद। छवि सौजन्य : विकिमीडिया कॉमन्स
भद्रा किले का घंटाघर यहाँ की सबसे शानदार संरचना है। 1849 में, ईस्ट इंडिया कंपनी लंदन से इसकी घड़ी लाई थी, जिसे 1878 में यहाँ स्थापित किया गया। शुरुआत में, इस घंटाघर में मिट्टी के तेल के दीये से रोशनी की जाती थी। लेकिन 1915 में, इसके स्थान पर अहमदाबाद की पहली बिजली से चलने वाली बत्ती का उपयोग हुआ। यह एक महत्त्वपूर्ण विकास था। इसकी घड़ी खराब हो गई थी, लेकिन 2016 में नवसारी के घड़ियों के मरम्मतकर्ता, पर्सी दारुवाला ने इसे फिर से ठीक कर दिया।
भद्रा किले का घंटाघर। छवि सौजन्य : विकिमीडिया कॉमन्स
मुगल सूबेदार, आज़म खान ने 1637 में, यहाँ आज़म खान सराय का निर्माण किया था। यह सराय किले के परिसर के भीतर स्थित एक शाही महल है। मुगल शासनकाल में इस शानदार संरचना का उपयोग मुसाफ़िरखाने (यात्रियों के लिए विश्राम करने का स्थान) के रूप में हुआ करता था। इसमें एक बड़ा प्रवेश द्वार है, जो अष्टभुजाकार सभागृह की ओर जाता है। किसी समय इस शाही महल की छत पर एक सूली हुआ करती थी, जिसकी मदद से कैदियों को फाँसी दी जाती थी। मराठों के शासनकाल में, आज़म खान सराय के उत्तरी खंड के एक कमरे को भद्र काली के मंदिर में परिवर्तित किया गया था। वर्तमान में, इस महल में स्वतंत्रता दिवस और गणतंत्र दिवस पर राष्ट्रीय ध्वज फहराने का कार्यक्रम आयोजित किया जाता है।
आज़म खान सराय। छवि सौजन्य : विकिमीडिया कॉमन्स
इस किले से एक लोकप्रिय किवदंती जुड़ी है, जिसके अनुसार, जब धन की देवी, माँ लक्ष्मी किला छोड़ने जा रही थीं, तब सिद्दीक कोतवाल नामक एक चौकीदार ने उनसे निवेदन किया कि वे राजा को सूचित किए बिना वहाँ से न जाएँ। चौकीदार के राजा से मिलकर वापस आने तक देवी प्रतीक्षा करने के लिए मान गई। लेकिन कोतवाल कभी वापस नहीं आया। देवी शहर को कभी छोड़कर न जाएँ, इसके लिए उसने खुद को मार डाला। ऐसा माना जाता है यह घटना अहमदाबाद शहर की समृद्धि का कारण बनी। भद्रा प्रवेश द्वार के निकट उस चौकीदार की स्मृति में मकबरा बनाया गया था।
2014 में, अहमदाबाद नगर निगम (एएमसी) और भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण ने शहर के सांस्कृतिक केंद्र के रूप में भद्रा किले का जीर्णोद्धार किया। अहमदाबाद का यह शानदार किला, पर्यटकों के लिए एक प्रमुख आकर्षण है। अपने निर्माण के हज़ारों वर्ष बाद, आज भी यह कालातीत संरचना इतिहास प्रेमियों के लिए धरोहर और संस्कृति का अनमोल खज़ाना है।
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