ड्रामा इन रूरल इंडिया
Author: माथुर, जे.सी.
Keywords: भारत का लोक प्रदर्शन अध्ययन, ग्रामीण भारत का पारंपरिक नाटक
Publisher: भारतीय सांस्कृतिक संबंध परिषद, नई दिल्ली
Description: जे. सी. माथुर का यह कार्य देश के विभिन्न हिस्सों में अभिनीत पारंपरिक नाटक के सर्वेक्षण और अध्ययन के उनके विशेष प्रयास को दर्शाता है। यह पुस्तक उनके भौतिक अनुभवों का एक स्पष्ट वर्णन है जो उन्होंने भारत के सुदूरवर्ती गाँवों में अपनी उद्देश्यपूर्ण यात्राओं के दौरान प्राप्त किए थे। लेखक माथुर पूरे उपमहाद्वीप में वर्ष भर मंचित किए जाने वाले पारंपरिक नाटकों की जीवंत तथा सामान्य विशेषताओं को निरखने और प्रदर्शित करने में सक्षम रहे हैं। पुस्तक का पहला अध्याय ही, मेलों, सड़कों, और निजी परिसरों के साथ साथ मंदिर परिसरों जैसे कई स्थानों में अभिनीत होने वाले लोक नाटकों के जीवंत स्वरूप का प्रतिबिंबन है। लेखक इस अध्याय में गाँव के प्रेक्षागृह और इसकी कार्य पद्धति के बारे में भी लिखते हैं। पुस्तक को भारत में पारंपरिक नाटक का जीवंत विवरण प्रदान करने के लिए इसके अध्यायों को व्यवस्थित रूप से बनाया गया है। माथुर अभिनय और सौंदर्यपरक आमोद-प्रमोद के साथ लोक नाटक के विषयों और सामाजिक उद्देश्यों से संबंधित अपने अवलोकन को भी प्रस्तुत करते हैं। कठपुतली-नाटक की परंपरा भी इस कार्य में अवलोकन की विषय-वस्तु है। पारंपरिक नाटक पर संगीत और नृत्य का अभिन्न प्रभाव भी माथुर द्वारा प्रकट किया गया है।
Source: इंदिरा गांधी राष्ट्रीय कला केंद्र
Type: दुर्लभ पुस्तक
Received From: इंदिरा गाँधी राष्ट्रीय कला केंद्र
| DC Field | Value |
| dc.contributor.author | माथुर, जे.सी. |
| dc.date.accessioned | 2019-10-22T06:54:13Z |
| dc.date.available | 2019-10-22T06:54:13Z |
| dc.description | जे. सी. माथुर का यह कार्य देश के विभिन्न हिस्सों में अभिनीत पारंपरिक नाटक के सर्वेक्षण और अध्ययन के उनके विशेष प्रयास को दर्शाता है। यह पुस्तक उनके भौतिक अनुभवों का एक स्पष्ट वर्णन है जो उन्होंने भारत के सुदूरवर्ती गाँवों में अपनी उद्देश्यपूर्ण यात्राओं के दौरान प्राप्त किए थे। लेखक माथुर पूरे उपमहाद्वीप में वर्ष भर मंचित किए जाने वाले पारंपरिक नाटकों की जीवंत तथा सामान्य विशेषताओं को निरखने और प्रदर्शित करने में सक्षम रहे हैं। पुस्तक का पहला अध्याय ही, मेलों, सड़कों, और निजी परिसरों के साथ साथ मंदिर परिसरों जैसे कई स्थानों में अभिनीत होने वाले लोक नाटकों के जीवंत स्वरूप का प्रतिबिंबन है। लेखक इस अध्याय में गाँव के प्रेक्षागृह और इसकी कार्य पद्धति के बारे में भी लिखते हैं। पुस्तक को भारत में पारंपरिक नाटक का जीवंत विवरण प्रदान करने के लिए इसके अध्यायों को व्यवस्थित रूप से बनाया गया है। माथुर अभिनय और सौंदर्यपरक आमोद-प्रमोद के साथ लोक नाटक के विषयों और सामाजिक उद्देश्यों से संबंधित अपने अवलोकन को भी प्रस्तुत करते हैं। कठपुतली-नाटक की परंपरा भी इस कार्य में अवलोकन की विषय-वस्तु है। पारंपरिक नाटक पर संगीत और नृत्य का अभिन्न प्रभाव भी माथुर द्वारा प्रकट किया गया है। |
| dc.source | इंदिरा गांधी राष्ट्रीय कला केंद्र |
| dc.format.extent | 121 p. 6 plates. |
| dc.format.mimetype | application/pdf |
| dc.language.iso | अंग्रेज़ी |
| dc.publisher | भारतीय सांस्कृतिक संबंध परिषद, नई दिल्ली |
| dc.subject | भारत का लोक प्रदर्शन अध्ययन, ग्रामीण भारत का पारंपरिक नाटक |
| dc.type | दुर्लभ पुस्तक |
| dc.identifier.accessionnumber | 927 |
| dc.format.medium | text |
| DC Field | Value |
| dc.contributor.author | माथुर, जे.सी. |
| dc.date.accessioned | 2019-10-22T06:54:13Z |
| dc.date.available | 2019-10-22T06:54:13Z |
| dc.description | जे. सी. माथुर का यह कार्य देश के विभिन्न हिस्सों में अभिनीत पारंपरिक नाटक के सर्वेक्षण और अध्ययन के उनके विशेष प्रयास को दर्शाता है। यह पुस्तक उनके भौतिक अनुभवों का एक स्पष्ट वर्णन है जो उन्होंने भारत के सुदूरवर्ती गाँवों में अपनी उद्देश्यपूर्ण यात्राओं के दौरान प्राप्त किए थे। लेखक माथुर पूरे उपमहाद्वीप में वर्ष भर मंचित किए जाने वाले पारंपरिक नाटकों की जीवंत तथा सामान्य विशेषताओं को निरखने और प्रदर्शित करने में सक्षम रहे हैं। पुस्तक का पहला अध्याय ही, मेलों, सड़कों, और निजी परिसरों के साथ साथ मंदिर परिसरों जैसे कई स्थानों में अभिनीत होने वाले लोक नाटकों के जीवंत स्वरूप का प्रतिबिंबन है। लेखक इस अध्याय में गाँव के प्रेक्षागृह और इसकी कार्य पद्धति के बारे में भी लिखते हैं। पुस्तक को भारत में पारंपरिक नाटक का जीवंत विवरण प्रदान करने के लिए इसके अध्यायों को व्यवस्थित रूप से बनाया गया है। माथुर अभिनय और सौंदर्यपरक आमोद-प्रमोद के साथ लोक नाटक के विषयों और सामाजिक उद्देश्यों से संबंधित अपने अवलोकन को भी प्रस्तुत करते हैं। कठपुतली-नाटक की परंपरा भी इस कार्य में अवलोकन की विषय-वस्तु है। पारंपरिक नाटक पर संगीत और नृत्य का अभिन्न प्रभाव भी माथुर द्वारा प्रकट किया गया है। |
| dc.source | इंदिरा गांधी राष्ट्रीय कला केंद्र |
| dc.format.extent | 121 p. 6 plates. |
| dc.format.mimetype | application/pdf |
| dc.language.iso | अंग्रेज़ी |
| dc.publisher | भारतीय सांस्कृतिक संबंध परिषद, नई दिल्ली |
| dc.subject | भारत का लोक प्रदर्शन अध्ययन, ग्रामीण भारत का पारंपरिक नाटक |
| dc.type | दुर्लभ पुस्तक |
| dc.identifier.accessionnumber | 927 |
| dc.format.medium | text |
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